रवीन्द्रनाथ टैगोर
जब भी साहित्य कला का जिक्र होता है, रवीन्द्रनाथ टैगोर का नाम सर्वप्रथम लिया जाता है। स्वर्गीय रवीन्द्रनाथ टैगोर की कृतिया न केवल भारत मे ही अपनी ख्याति प्राप्त की है बल्कि पूरे विश्व स्तर पर अपनी ख्याति प्राप्त की है। किसी भी मनुष्य के आध्यात्मिक ज्ञान की शुरूआत साहित्य से ही होकर गुजरती है। साहित्य के सभी शाखाओ मे उनकी रचनाएँ शामिल है। कविता, उपन्यास, नाटक, कथा सभी तरह की रचनाओं में उनका बहुत ही बड़ा योगदान रहा है। उनकी द्वारा प्रकाशित की गई रचनाओं मे गीतांजलि, गीतिमाल्य, कथा ओ कहानी, गीताली, भोलानाथ, कणिका प्रमुख है। अपनी कई कृतियो का उन्होने अंग्रेजी मे अनुवाद किया है, जिससे उनकी ख्याति पूरे विश्व में फैली।
उनकी 'गीतांजली' और 'चित्र' अन्तराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित कर चुकी है। सन् 1913 मे उनको साहित्य के लिए सर्वश्रेष्ठ 'नोबेल पुरस्कार' देकर सम्मानित किया गया था। इसके बाद ही उनके नाम के साथ ' विश्व कवि' शब्द जुड़ गया। उनके द्वारा रचित ' जन-गन- मन-अधिनायक-जय हे' भारत का राष्ट्रीय गान है। रवीन्द्रनाथ टैगोर एक चित्रकार भी थे, इसमें भी उन्होने कई ख्याति अर्जित की है। बंगला संगीत को उच्चाई तक ले जाने का श्रेय भी इन्ही को जाता है। प्रसिद्ध 'रवीन्द्र संगीत' इन्ही की देन है। टैगोर ने गांधीजी को 'महात्मा' का विशेषण दिया था। वे कविगुरु एव विश्वगुरु के नामो से भी जाने जाते है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 मे कलकत्ता मे हुआ था। उनकी माता का नाम सारदा देवी एवं पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर था, जो ब्रह्म समाज के नेता थे।जब रवीन्द्रनाथ टैगोर की आयु 14 की भी नहीं हुई थी तब उनकी माता सारदा देवी का निधन हो गया था। रवीन्द्रनाथ टैगोर को बचपन से ही साहित्य के प्रति गहन रुचि थी। उन्होने मात्र आठ वष॔ की आयु मे ही अपनी पहली कविता लिखी थी और मात्र सोलह वष॔ की आयु मे उनकी लघु कथा प्रकाशित हुई थी। 7 अगस्त 1941 को उनका निधन हो गया था।
Comments
Post a Comment